ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया गया गौरा-गौरी का विवाह
मालूम हो कि हिन्दू धर्म में नवरात्र में गौरा-गौरी के विवाह होने के पश्चात ही शादियों का शुभ मुहूर्त शुरू होता है। जब तक गौरा-गौरी का विवाह नहीं होता है, तब तक हिन्दू धर्म में शादियों का शुभारंभ नहीं होता है। क्षेत्र में यह परंपरा प्राचीन काल से निरंतर चली आ रही है। गांव की महिलाएं, पुरुष एवं सभी बच्चे शाम को एक निश्चित स्थान पर एकत्र होते है, इसमें पुरुष कागज व मिट्टी के चौकला एवं बच्चे मिट्टी के हुक्के और महिलाएं मिट्टी के गौरा-गौरी सजाकर लाते है। फिर सभी लोग शाम को कुएं की रश्म सात फेरों के साथ करके गौरी-गौरी का विवाह संपन्न कराते है। महिलाएं भुने हुए चना, मक्का, चावल आदि के फूले एक दूसरों को वितरण करते है। उसके बाद सभी लोग भजन कीर्तन करते है। सुबह को सभी लोग एक तालाब में ले जाकर चौकलों को विसर्जन कर देते है। अमरैयाकलां में संस्कार कराने वाले पंडित मोतीराम ने बताया कि गांव में कुल 28 गौरा-गौरी का विवाह हुआ। समारोह में ओमकार कुशवाहा, सरोज यादव, विजयकुमार, रामेश्वरदयाल, हर्षित कुशवाहा, अर्पित कुशवाहा, अंशिका, अंशू, दिव्या, पवनकुमार, रविन्द्र कुमार, विकास, राधेश्याम, नन्दलाल, महेशकुमार, हरज्ञानसिंह, गंगाराम, वीरु राजपूत, दिनेश कुमार, वीरेश यादव, रामनरेश शर्मा, चन्द्रसेन, शिवम कुशवाहा आदि मौजूद रहे। इसके अलावा चौकला-चौकली का समारोह गांव खाता, रघुनाथपुर, महादिया, प्रसादपुर, रम्पुराफकीरे, देवीपुर, ककरौआ, नवदियाधनेश आदि गांव में मनाया गया।
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