गुरूद्वारों में धूमधाम से मनाई गई गुरू गोविन्द सिंह की जंयती
पूरनपुर-पीलीभीत। गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर गुरूद्वारों में काफी रौनक रही और शबद कीर्तन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। साथ ही गुरुद्वारों में संकीर्तन और गुरुवाणी का पाठ किया गया।
सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जंयती पर गुरूद्वारों में उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला गया। गुरू की जन्म भूमि बिहार की राजधानी पटना साहिब है, उनका जीवन परिचय परोपकार और त्याग का जीता जागता उदाहरण है। गुरु गोविंद सिंह अपने अनुयायियों को मानवता, शांति, प्रेम, करुणा, एकता और समानता की नजर से देखते थे। गुरु गोविंद सिंह ने ही वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी, उनका जीवन अन्याय, अधर्म, अत्याचार और दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए गुजरा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। उन्होंने खालसा वाणी-वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह भी दी। उन्होंने सदा प्रेम, एकता, भाईचारे का संदेश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। गुरू वाणी में उपदेश हैं कि भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। गुरु गोविंद सिंह ने जीवन जीने के लिए पांच सिद्धांत भी बताए जिन्हें ’पांच ककार’ कहा जाता है. पांच ककार में ये पांच चीजें आती हैं जिन्हें खालसा सिख धारण करते हैं. ’केश’, ’कड़ा’, ’कृपाण’, ’कंघा’ और ’कच्छा’. इन पांचो के बिना खालसा वेश पूर्ण नहीं माना जाता है।
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